Sakat Chauth कथा: सकट चौथ पर पढ़ें ये व्रत कथा, और गणेशजी आपकी संतान को दीर्घायु का वरदान देंगे।

एक नगर में एक कुम्हार था। वह एक बार बर्तन बनाकर आंवा लगाने के बाद आंवा नहीं पका। हारकर वह राजा के पास गया और बताया आंवां पक ही नहीं रहा है।

“राजपंडित ने कहा कि हर बार आंवां लगाते समय बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा.” जब राजा ने इसका कारण पूछा। राजा ने बलि का आदेश दिया।

बलि शुरू हुआ। जिस परिवार की बारी आती, वह अपने एक बच्चे को बलि दे देता।

कुछ दिनों बाद, एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया को वही जीवन का सहारा देता था।

राजकीय आज्ञा को कोई मना नही कर सकता। परेशान बुढ़िया सोच रही थी कि मेरा एकमात्र बेटा मुझसे जुदा हो जाएगा।

'भगवान् का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना,' बुढ़िया ने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा दिया। सकट माता बचाव करेगी।'

बालक को आंवा में बैठा दिया गया, और बुढ़िया अपनी सकट माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी।

आंवा पकने में पहले कई दिन लगते थे, लेकिन इस बार सकट माता की कृपा से एक रात में आंवा पक गया।

जब कुम्हार ने पहली बार देखा, तो वह हैरान रह गया। आंवां पक गया था। बुढ़िया का बेटा और अन्य बच्चे सुरक्षित थे।

लड़के को नगरवासियों ने धन्य माना और सकट की महिमा स्वीकार की। तब से आज तक, सकट की पूजा विधिपूर्वक की जाती है।